स्मृति के पंख – 29
राज व पृथ्वी राज की अपनी अलग दुनिया थी। मेरी मदद को उनका दिल करता कि कब पिताजी का हाथ
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Read Moreहिन्दी अधिकारियों के सम्मेलन में जब सिन्हा जी हमारे सहायक महाप्रबंधक थे, तभी प्रधान कार्यालय से मुझे हिन्दी अधिकारियों के
Read Moreथोड़े दिनों बाद मुझे वही मकान अलाट हो गया। मैंने मण्डी के नजदीक चाहा था, वह मण्डी के नजदीक था,
Read Moreपहली समस्या ऊपर मैं लिख चुका हूँ कि मेरे आने से पहले कम्प्यूटर सेंटर में अधिक काम नहीं होता था।
Read Moreमलेर कोटले में मुसलमान लोग बैठे थे। और वहाँ बाकायदा पैदावार हो रही थी। वहाँ के मुसलमान पाकिस्तान नहीं गये
Read Moreडा. अनिल अग्रवाल कानपुर आये हुए हमें अधिक दिन नहीं हुए थे, जब हमारा परिचय दूर के एक रिश्तेदार छात्र
Read Moreकेवल सिर्फ 12 घंटे का था, इसलिये उसको माता के साथ अस्पताल के डब्बा में जगह मिल गईं। हमें क्या
Read Moreकानपुर शहर यहाँ कानपुर शहर के बारे में बता देना अच्छा रहेगा। यह शहर उत्तर प्रदेश का सबसे अधिक जनसंख्या
Read Moreबिग्रेडियर ने हमें चेतावनी दे दी थी कि मेरी तबदीली हो चुकी है लेकिन मैं चाहता हूँ कि तुम लोगों
Read Moreअथ अपनी आत्मकथा के पिछले भाग ‘दो नम्बर का आदमी उर्फ आ ही गया बसन्त’ में मैं लिख चुका हूँ
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