यशोदानंदन-४७
श्रीकृष्ण, बलराम और मित्रों के साथ मंद स्मित बिखेरते हुए मंथर गति से राजपथ पर अग्रसर हो रहे थे। वे
Read Moreश्रीकृष्ण, बलराम और मित्रों के साथ मंद स्मित बिखेरते हुए मंथर गति से राजपथ पर अग्रसर हो रहे थे। वे
Read Moreअतीत कि स्मृतियों को याद करते-करते रथ कब मथुरा के राजपथ पर दौड़ने लगा, कुछ पता ही नहीं चला। शीघ्र
Read Moreसूरज अपना गुण-धर्म कब भूलता है! प्राची के क्षितिज पर अरुणिमा ने अपनी उपस्थिति का आभास करा दिया। व्रज की
Read Moreमाता अपने ही दिये गए आश्वासन के जाल में उलझ गई थी। देर तक श्रीकृष्ण का मुखमंडल एकटक निहारती रहीं।
Read Moreनन्द बाबा ने ब्रह्मास्त्र चला ही दिया। सारे संसार को समझाना आसान था लेकिन मैया को? बाप रे बाप! वे
Read Moreअक्रूर जी कुछ क्षणों तक मौन रहे। वे स्पष्ट शब्दों में कैसे बताते कि किस निमित्त उन्होंने यात्रा की है?
Read Moreअक्रूर जी ने कंस का कथन बड़े ध्यान से सुना। कुछ समय मौन रहकर विचार किया – यदि वह बालक
Read More55. मंगल उत्सव राजमहल की अट्टालिका पर साम्राज्ञी देवलदेवी खड़ी थी। सांझ ढल रही थी। स्वच्छ आकाश में तैरते हुए पक्षी
Read More“हे सच्चिदानन्द स्वरूप श्रीकृष्ण! आपका यह अद्भुत रूप मन और वाणी का विषय नहीं है। आप योगेश्वर हैं। सारे जगत
Read More54. अध्यादेश एवं धर्म स्थापना सिंहासन रोहण के उपरांत साम्राज्ञी देवलदेवी और सम्राट धर्मदेव ने धर्म के अनुसार शासन-व्यवस्था को सुदृढ़
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