कुण्डलिया
कुण्डलिया * १- सावन आया झूम के ,महक उठे वन बाग । हर्षित दादुर मोर सब ,झींगुर गायें राग ।
Read Moreकृपाण अंत्यानुप्रास , छ्न्द गेयता विकाश, यति गति हो प्रवाह, आठ चौगुना विवेक। वर्ण वर्ण घनाक्षरी, कवित्त चित्र चाल से,
Read Moreयोग भोग भगा मन योग सज़ा तन जीवन ज्योति प्रभाकर धामा। मंत्र महा मनरोग निवारक साधक साधु दिवाकर नामा। पाठक
Read Moreज्ञानी ज्ञानिक ढूढ़ता, सतत पंथ ज्यों संत माया मोह विराग में , गुण गति कैसा अंत गुणगति कैसा अंत ,
Read Moreमनोरम गाँव की गलियाँ छटा मन को लुभाती है बगीचा आम महुआ आँवला कटहल सजाती है सई की धार भी
Read Moreहिन्दुओं की आस्था भी मखौल बनी भारत में । देख राजनीति का ये रंग रोष छा रहा ।। ईश्वर की
Read More१. तुलसी का बिरवा नहीं, दिखता आँगन माँहि । संस्क्ति, आस्था त्याग सब, नए दौर में जाहिं ।।
Read More?????? कृष्ण को सदैव राधिका रही पुकारती। तृष्ण को सुने न कृष्ण राह थी बुहारती। पीर है बढ़ी चली
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