कफस में कनेरी
जाल बिछाया छलिया अहेरी, कहां समझ पाई मैं नन्ही कनेरी? देकर मुझे अधम ने प्रलोभन, छीन लिया मेरा उन्मुक्त गगन।
Read Moreजाल बिछाया छलिया अहेरी, कहां समझ पाई मैं नन्ही कनेरी? देकर मुझे अधम ने प्रलोभन, छीन लिया मेरा उन्मुक्त गगन।
Read Moreआज मैं बड़े असमंजस में हूँ , सोचती हूँ क्या कहूँ, यही सोच रही हूँ कि हम अभावों को कैसे समझ
Read Moreनेताओं के दंश, बड़े विध्वंसक हैं. आएंगे बनके रक्षक, पर भक्षक हैं. इनकी सिर्फ कथनी-करनी ही नहीं, ये मानव हैं,
Read Moreतटस्थ सूचना निष्पक्ष विश्लेषण समय वो पीछे छूट गया दायित्वों से वचनबद्ध था चौथा स्तंभ वो टूट गया । सनसनी
Read Moreव्यतीत करना छोड़ दें जीवन जीना अब तू सीख ले । अपने जीवन काल में तू कर गुज़र कुछ ऐसा
Read Moreकलयुग के भारत की हैं बात निराली ईमानदारी यहाँ कुछ ने ही जानी। माँ-बाप की कुछ लोग कद्र नहीं करते
Read Moreमुझ पर एक अहसान जताओ मुझ पर तुम कोई जुर्म न ढ़हाओ मेरे इस अस्तित्व को कृपया कर तुम ही
Read Moreहर पल, हर घड़ी घुट-घुटकर जीते लोग यहाँ। सूखा, बाढ़, भुखमरी से हर साल जूझते लोग यहाँ। देश की बेटियों
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