कविता

जलियांवाला बाग

अपनी सत्ता बचाने को,
विद्रोह का डर मिटाने को,
उठती आवाजें दबाने को
हुआ था जलियांवाला बाग।
कोई न बच सका था
जो भी था उस मैदान में।
कोई न सोच सका था
कि यह भी होगा अंग्रेजी राज में।
मर्द हो, औरत हो या नवजात हो
किसी को नहीं बख्शा था ‘डायर’ ने
इंसानियत का गला घोंटा था
उस दिन उस कायर ने।
कांप उठते हैं सब लोग
सुनकर कहानी उस बैसाखी की।
और पूछ उठते हैं एक ही सवाल
क्यों हुआ था जलियांवाला बाग?

– श्रीयांश गुप्ता

श्रीयांश गुप्ता

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