कविता

कल और कल

सीचें पानी, न करें इंतज़ार बरसात की

न करें चिंता बरसात की

बगैर करें चिंता खुशकी – ए – पंखुड़ी की

कैसे करें उम्मीद अनदेखे कल की

न करें पछतावा बीते हुए कल की।

सीचें पानी, न करें इंतज़ार बरसात की

— वत्सला सौम्या समरकोन

वत्सला सौम्या समरकोन

सहायक व्याख्याता, हिन्दी विभाग, कॅलणिय विश्वविद्यालय, श्री लंका। उद्घोषक, श्री लंका ब्रोडकास्टिंग कोपरेशन (रेडियो सिलोन)