धैर्य
जब कभी छाती के अंदर धैर्य की चिड़िया रास्ता भटक जाती है अधैर्य के बरसाती आसमान में तब मैं किसी
Read Moreमैं आम इंसान हूँ सादा जिंदगी, दो वक्त की रोटी जुटा पाता हूँ दिहाड़ी मजदूरी करता हूँ परेशानियों से बोलवाला
Read Moreआज मैं बड़े असमंजस में हूँ , सोचती हूँ क्या कहूँ, यही सोच रही हूँ कि हम अभावों को कैसे समझ
Read Moreहम साथ खेलते-खेलते कब बड़े हो गए, पता न चला, हम लड़ते झगड़ते कब समझदार बन गए, पता न चला,
Read Moreप्यार के गीत गाते रहो । हर हाल मुस्कुराते रहो ॥ जीत हार से होकर परे । जश्न ए खुशी
Read Moreएस. पी. चंदा सिंह ने इंस्पेक्टर मूलचंद से पूँछा। “अब तो तुम्हारी बेटी साल भर की होने वाली होगी।” “हाँ
Read Moreविभूति बाबू के रिटायरमेंट को करीब छह महीने बीत गए थे। उनके कमरे में चारों तरफ साहित्यिक किताबें रखी थीं।
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