मदन मोहन सक्सेना

गीतिका/ग़ज़ल

गीतिका : ये कैसा तंत्र

कैसी सोच अपनी है किधर हम जा रहे यारो गर कोई देखना चाहे बतन मेरे वह आ जाये तिजोरी में

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : दर्द से मेरे रिश्ते पुराने लगते हैं

वह हर बात को मेरी क्यों दबाने लगते हैं जब हकीकत हम उनको समझाने लगते हैं जिस गलती पर हमको

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कवितागीत/नवगीतगीतिका/ग़ज़ल

हम सबको तुम छोड़ चले

हम सबको तुम छोड़ चले प्रिय मित्रो मुझे बताते हुए बहुत दुःख हो रहा है कि मेरे पिताजी का स्वर्गबास

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गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : माँ का एक सा चेहरा

बदलते वक्त में मुझको दिखे बदले हुए चेहरे माँ का एक सा चेहरा, मेरे मन में पसर जाता नहीं देखा

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गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल : वक्त कब किसका हुआ

वक्त कब किसका हुआ जो अब मेरा होगा बुरे बक्त को जानकर सब्र किया मैनें किसी को चाहतें रहना कोई

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अन्य लेखधर्म-संस्कृति-अध्यात्मलेखसामाजिक

धनतेरस का पर्ब (परम्पराओं का पालन या रहीसी का दिखाबा )

आज यानि शुक्रबार दिनांक नवम्बर छह दो हज़ार पंद्रह ,आज के तीन दिन बाद को पुरे भारत बर्ष में धनतेरस

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