ग़ज़ल (सपने खूब मचलते देखे)
सपनीली दुनियाँ मेँ यारो सपने खूब मचलते देखे
रंग बदलती दूनियाँ देखी, खुद को रंग बदलते देखा
सुविधाभोगी को तो मैंने एक जगह पर जमते देख़ा
भूखों और गरीबोँ को तो दर दर मैंने चलते देखा
देखा हर मौसम में मैंने अपने बच्चों को कठिनाई में
मैंने टॉमी डॉगी शेरू को, खाते देखा, पलते देखा
पैसों की ताकत के आगे गिरता हुआ जमीर मिला
कितना काम जरुरी हो पर उसको मैंने टलते देखा
रिश्ते नाते प्यार की बातें, इनको खूब सिसकते देखा
नए ज़माने के इस पल मेँ अपनों को भी छलते देखा
— मदन मोहन सक्सेना