कविता : रहो देखते यू.पी. वालो…
यह कविता मैंने उत्तर प्रदेश के २०१२ के विधानसभा चुनावों के परिणामों के तुरंत बाद लिखी थी. इसमें मैंने उ.प्र. का दिवाला पिटने की सम्भावना जताई थी. यह कविता ‘युवा सुघोष’ के मई-जून २०१२ के अंक में छापी गयी है. इसे पढ़कर देखिये और आज की स्थितियों की तुलना कीजिये कि मेरी वह आशंका कितनी सत्य सिद्ध हुई है.
इस चुनाव में यूपी की जनता ने यह क्या कर डाला?
लोकतंत्र की पुस्तक में एक पन्ना जोड़ दिया काला।
आसमान से गिरे और जैसे खजूर में जा अटके;
शासन सौंप दिया उसको जो है गुंडा देखा-भाला।।
बेटे को करके आगे लूटी चुनाव में जय माला,
5 वर्ष तक गाँव-गाँव में जिसने गुंडों को पाला।
छाँट-छाँटकर उसने गुंडों को मंत्री पद बाँट दिये,
कुर्सी पर है भारत माता को डायन कहने वाला।।
जिसने निहत्थे रामभक्तों को गोली से मरवा डाला,
चौराहे पर माँ-बहनों की इज्जत पर डाका डाला।
जिसके रहने से खतरे में रहे धर्म और प्राण सदा,
वही बना है आज यहाँ देखो प्रदेश का रखवाला।।
जिसने प्रदेश को जमकर लूटा औ’ कंगाल बना डाला
नया मुखौटा पहन आ गया बनकर सबका रखवाला।
जनता ने जो पाप किया है उसका फल भुगतेगी ही,
रहो देखते यू.पी. वालो जल्द पिटेगा दीवाला।।