राजनीतिहास्य व्यंग्य

केजरीवाल जी, नो उल्लू बनाविंग…

kejrival

कालीबाड़ी में हुए मोहल्ला सभा में केजरीवाल ने स्वीकार किया की उन्हें लगा की वो सरकार पूर्ण बहुत से बना लेंगे इसलिए इस्तीफा दिया. केजरीवाल राजनीति को अपने “लगने”और “न लगने” के चश्मे से ही तय करते है.
उन्हें “लगता है” की गडकरी भ्रष्ट है, उन्हें  “लगता है की” संविधान भ्रष्ट है, उन्हें लगता है की जमानत मागने वाला “जज” गलत है.
चुनाव से पहले उन्हें  बटाला काउंटर  पुलिस वाले पहले गलत लगते थे, चुनाव के बाद उसी पे कोर्ट का निर्णय सही लगता है.
पहले उनको कुर्सी छोड़ के भागना राम के त्याग के बराबर लगता था, और अब उस त्याग पे माफ़ी मांगते है यानी उनकी नजर में राम गलत बना दिया.
देल्ही विधानसभा चुनाव से पहले कोंग्रेस  भ्रष्ट लगती थी, चुनाव के बाद उसी के साथ सरकार बना ली.
पहले उन्हें लगता था की उन्हें राजनीति में नहीं आना चाहिए, फिर उन्हें लगा की आना चाहिए.
पहले किरण बेदी उन्हें ठीक लगती थी, बाद में भाजपा की एजेंट हो गयी,पहले विक्रम सिंह उन्हें ठीक लगते थे, बाद में वो भी भाजपा के एजेंट हो गए,पहले राम देव उन्हें महान लगते थे सो उन्ही के गोद से आन्दोलन शुरू किया, बाद में उन्हें लगने लगा की  रामदेव उनके राजीनीतिमें आने वाले प्लान के रास्ते के रोड़े है, सो बाद में वो भ्रष्ट हो गए.
उन्हें लगता है की अदानी मोदी को जहाज देते है, जरुर गड़बड़, लेकिन उन्हें ये भी लगता है की आजतक वाले उन्हें चार्टर्ड में लाते है तो ठीक है.
उन्हें लगता है की ५०० रूपये जेब कहने से बनारस की जनता मुर्ख बन जाएगी, जबकि वापसी चार्टड में हुयी तो लगता था ये बात जनता को पता नहीं चलेगी.
लोकसभा चुनाव से पहले केजरीवाल को  लगता था की बनारस में “सत्यमेव जयते” होगा और बनारस की जनता बुध्धिमान है, अब उन्हें लगता है की बनारस की जनता बेवकूफ है.
पहले उन्हें लगता था की सरकार छोड़ कर जनता की सहानुभूति मिलेगी तो सरकार छोड़ने का स्टंट किया, अब उन्हें वो गलती लगती है.
उन्हें लगा की उनकी धरना देने वाले या वैसे ही कुछ  विकट हरकत से वो मिडिया में छाये रह सकते है, और छाये भी, लेकिन अब जब मीडिया उन्हें नहीं पूछता तो उन्हें भ्रष्ट लगता है.
पहले इनको कोंग्रेस भ्रष्ट लगती थी, बाद में इन्हें बेदाग़ मोदी भ्रष्ट लगने लगे, पहले इनको भ्रस्टाचार एक सही मुद्दा लगता था, बाद में साम्प्रदायिकता लगने लगी.
फिर इनको लगाने लगने लगा की पुरे देश में सभी पार्टियों का जमानत जब्त करवा देंगे, लेकिन जनता फिर लगा के जूता मारा मुह पर और ४०० से जादा सीटों पर जमानत जब्त करवा दी.
इनको लगता है की नेतावो को इनका जवाब देना चाहिए, और इनको ये भी लगता है की इनको किसी का जवाब नहीं देना चाहिए, इनको लगता है की इनसे सवाल पूछने वाला या तो भ्रष्ट है या भाजपा – कोंग्रेस का एजेंट.
इनको लगता है सब पर इल्जाम लगाना चाहिए, लेकिन इनको ये भी लगता है की इनकी आलोचना न हो.
केजरीवाल जी इस लगाने लगाने वाले चक्कर से बाज आईये, आपके इसी लगने  लगाने वाले व्यवहार से जनता ने आपको दख्खिन लगा दिया, अब कितनी बार लगवावोगे ? 
आपका और आपियो का वही हाल है “अबकी मारो  तो जाने ” “अबकी देख लेना” ये “आपीए”  (चुतिया x 1000= 1 आपिया)  पहले डेल्ही के विधान सभा में सबकी जमानत जब्त करवाते थे, दुसरे नंबर पर आये तो मुह काला कोंग्रेस के साथ किया जिसको ये एड्स से पीड़ित मानते थे. अब वही कोंग्रेसी बिमारी इन आपियो को लग गयी है. जानलेवा है धीरे धीरे आपियो और आपा को खत्म कर देगी. लेकिन फिर भी रोगी जब तक मर न जाए लड़ता है, जूझता है ऐसी ही हालत इन आपियो की है.
सब मिला के उन्हें अब भी लगता है की वो जनता को उल्लू बना सकते है, वो बात अलग है की जनता ने उन्हें उल्लू मान के बैठी है, जो रात के समय अपने हिसाब से “लगने” के  वातावरण में निकलता है.
जनता समझ चुकी है आपीए गुलेल से जहाज मार गिराने की बात करते है – तो प्लीज नो मोर उल्लू बनाविंग.
सादर
कमल कुमार सिंह.