गज़ल (शून्यता)
गज़ल (शून्यता)
जिसे चाहा उसे छीना , जो पाया है सहेजा है
उम्र बीती है लेने में ,मगर फिर शून्यता क्यों हैं
सभी पाने को आतुर हैं , नहीं कोई चाहता देना
देने में ख़ुशी जो है, कोई बिरला सीखता क्यों है
कहने को तो , आँखों से नजर आता सभी को है
अक्सर प्यार में ,मन से मुझे फिर दीखता क्यों है
दिल भी यार पागल है ,ना जाने दीन दुनिया को
दिल से दिल की बातों पर आखिर रीझता क्यों है
आबाजों की महफ़िल में दिल की कौन सुनता है
सही चुपचाप रहता है और झूठा चीखता क्यों है
मदन मोहन सक्सेना
sundar gajal madan saxena ji hardik badhai
प्रोत्साहन के लिए आपका हृदयसे आभार . सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है .
वाह , सक्सेना जी किया ग़ज़ल लिखी है . उम्र बीती है लेने में फिर शूनिअता कियों है , बस यहीं तो इंसान का दुर्भाग्य है .
आपका हृदयसे आभार . सदैव मेरे ब्लौग आप का स्वागत है .