कहाँ है मेरे पद चिन्ह !
अनुकरण करते -करते ,
पद चिन्हों पर
चलते -चलते
भूल ही गए अपने क़दमों की आहट।
मालूम नहीं था
एक दिन गुम हो जाना है
इस धरा में मिल जाना है
बन कर मिट्टी।
या
विलीन हो जाना है
वायु में
बिना महक ,बिना धुँआ।
बस यूँ ही चलते ही गए
अनुगामी बन
ढूंढी ही नहीं कभी
अपनी राह।
पैरों की रेखाएं ,
पद्म चिन्ह
सब गुम हो गए ,
चलते -चलते
क़दमों पर कदम रखते।
आज मुड़ कर देखा
कहाँ है मेरे
पद चिन्ह !
उन्हें तो निगल गयी है
तपती धूप।