सब से मिलता है,अजनबी की तरहा…
सब से मिलता है, अजनबी की तरहा।
आदमी हो गया, खुशी की तरहा॥
अब कोई अपना सा, नही लगता
बेवफा सब है, जिन्दगी की तरहा॥
जाने खुदगर्जी के, किस दौर में चले आए।
लोग रिश्तें भी निभातें हैं,दुश्मनी की तरहा॥
अब तेरे फन से, गिरगिटों मे भी बेचैनी है।
किस तरहा रंग वो, बदलेगा आदमी की तरहा॥
जाने कैसी हवा चली, बदल गया सब कुछ।
उनकी नफरत भी, पुज रही है बंदगी की तरहा॥
पत्थरों मे तलाशते हो, भावना का वजूद।
कुछ नही पाओगें मेरी, आवारगी की तरहा॥
जिसको अपना वजूद, अपनी जिन्दगी समझा।
वो भी निकला, हर किसी की तरहा॥
सब से मिलता है, अजनबी की तरहा।
आदमी हो गया, खुशी की तरहा…
सतीश बंसल