कविता

वर्ण पिरामिड

हम ख़ुद की जिम्मेदारी ईमानदारी से निभा लें तो वही बहुत है

बलि का मीट
बिना लहसुन प्याज का पकता
दशहरा में शोर क्यों नहीं मचता

हिन्दुओं-बात हिन्दुओं को पचता

1

स्व
सरी
निश्छल
स्थिर होती
सींचती जीव
डूबा देती नाव
ज्यूँ उबाल में आती

2

हो
नाव
मोहक
जलयान
धारा की सखी
क्षुधा पूर्ति साध्य
जीविका मल्लाह की

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

7 thoughts on “वर्ण पिरामिड

  • महातम मिश्र

    बहुत बढ़िया भावपूर्ण पिरामिड आदरणीया, ज्यूँ भंवर में आती कैसा रहेगा आदरणीया, कृपया अन्यथा न लें

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      उम्दा सलाह आपका
      आभारी हूँ

  • वैभव दुबे "विशेष"

    बहुत खूब आदरणीय
    अच्छा प्रश्न

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ
      बहुत बहुत धन्यवाद आपका

  • Man Mohan Kumar Arya

    रचना में निहित सन्देश को समझ नहीं सका। यदि समझ सकता तो शायद कुछ प्रतिक्रिया देता। धन्यवाद।

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      मैं अपने पति के साथ IEI के कॉंसिल मीटिंग में पूरे देश के लोगों से मिलती रहती हूँ
      कई हिंदुओं को जानती हूँ जिन्हें किसी चीज के मीट खाने और पीने में परहेज नहीं होता
      फिर कुर्बानी पर चिकचिक क्यों ?

      • Man Mohan Kumar Arya

        यदि मुझे अपनी बात कहने का अधिकार है तो मांसाहार को मूक प्राणियों के प्रति हिंसक कार्य होने के कारण इसे घोर अमानवीय समझता हूँ। हिन्दुओं का सर्वोपरि पुस्तक ईश्वरीय ज्ञान वेद भी पशु हिंसा एवं मांसाहार के विरुद्ध हैं। अगर मैं चाहता हूँ कि कोई प्राणी मेरे प्रति हिंसा न करे तो मुझे भी ईश्वर की इस सृष्टि में किसी प्राणी को मारने व खाने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। जो जैसे कर्म कर रहा है व करता है उसे जन्म जन्मान्तर में अपने कर्मो का फल मिलना ही है। अवश्यमेव हि भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभं। मांसाहार का कररण अज्ञान, कुछ लोगो की मांसाहारियों कीसंगति, जीभ का स्वाद और स्वार्थ आदि कररण है। ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे जिससे की निर्दोष, निष्पाप तथा मूक पशुओं को कोई पीड़ा न दे सके । दूसरों को दुःख देना अधर्म और दूसरों के दुःख दूर करना ही धर्म है। मनुष्य वही होता है जो अपने व दूसरों के सुख दुःख व हानि वा लाभ को समझता है और दूसरों के प्रति वही करता है जो दूसरों से अपने प्रति अपेक्षा रखता है।

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