गीतिका/ग़ज़ल

सब से मिलता है,अजनबी की तरहा…

सब से मिलता है, अजनबी की तरहा।
आदमी हो गया, खुशी की तरहा॥

अब कोई अपना सा, नही लगता
बेवफा सब है, जिन्दगी की तरहा॥

जाने खुदगर्जी के, किस दौर में चले आए।
लोग रिश्तें भी निभातें हैं,दुश्मनी की तरहा॥

अब तेरे फन से, गिरगिटों मे भी बेचैनी है।
किस तरहा रंग वो, बदलेगा आदमी की तरहा॥

जाने कैसी हवा चली, बदल गया सब कुछ।
उनकी नफरत भी, पुज रही है बंदगी की तरहा॥

पत्थरों मे तलाशते हो, भावना का वजूद।
कुछ नही पाओगें मेरी, आवारगी की तरहा॥

जिसको अपना वजूद, अपनी जिन्दगी समझा।
वो भी निकला, हर किसी की तरहा॥

सब से मिलता है, अजनबी की तरहा।
आदमी हो गया, खुशी की तरहा…

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.