नवजात-बाली
बैरन बन छाती क्यो, तू रे हवा मतवाली?
हिलौर न मुझको वेग से, मैं अभी “नवजात-बाली”
हृदय हूँ विश्वंभर का, आत्मजा मान जिसने पाली,
प्रकृति मेरी माता, भाई-बहन हर पत्ता-डाली।
उन्मत्त ना होना देख मुझे, वरना दूँगी तुझको गाली।
रूई के फाहों सी चलना, मत बनना अभी घटा-काली।
बन जाऊ तरूणी, भर दूँ सारे पेट खाली।
तू भी तो देख रही है बिन रोटी, हिंसा, बदहाली।
करती जा मेरी रक्षा, क्योंकि मैं अभी “नवजात-बाली”।।
— सोना श्री
सुन्दर सृजन