कविता

प्रथम प्रेम

प्रथम प्रेम —  आह्ह कैसा मीठा सा शब्द है , जो शहद की तरह घुल जाता है | जो दिलो दिमाग में और ह्रदय की शिराओ। की और बहने लगता है | उसकी यादो से स्मर्तियों के सारे उपवन महकने लगता है | हां मुझे भी शायद सबको हुआ होगा –उम्र का वो पड़ाव जहाँ यौवन और बचपन दोनों एक सीमा पर आकर टकराते है | यौवन जल्दी से रेखा पार करने की फिराक में और बचपन अपना अधिकार खत्म करना नहीं चाहता |
दिल ही है जो यादो को संजोकर धड़कता। है |पहली मोह्हबत का आगाज़ होने पर दिल कभी बेताब – कभी हँसता खिलखिलाता अपनों से खुद को छिपाना , पकडे जाने का एहसास , खुद पर इतरा जाना , हर पल किसी के साथ होने का एहसास , बिना नींद आये पलको को आँखों से मिला देना , उसके साथ की ज़ुस्तज़ु सब कितना रूमानी होता है |

मेरी पहली सी मोहब्बत का इकरार हो तुम ,
खोई सी इन आँखों का खवाब। हो तुम |
तुमसे मिलकर ही खुद को जाना ,
मेरा पहला पहला सा प्यार हो तुम ||

डॉली अग्रवाल

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