पपीहा मन प्यासा ही तरसा…
पपीहा मन प्यासा ही तरसा।
सब का सावन आया मेरा मेघा ना बरसा॥
पपीहा मन प्यासा ही तरसा…..
सहरा की रेती सा तपता, मन पीहूं बदरा को तकता।
आस लगाये बाट निहारे, निस दिन नेह देहरी रखता॥
नयना अपलक बरसे लेकिन, बदरा ना बरसा…
पपीहा मन प्यासा ही तरसा…..
मास बरस दिन बीते कितने, उंगली गिन गिन हारी।
हर दिन आस लगाये मनवा, अब है अपनी बारी॥
याद नही है कब प्यासा मन, खुशिय से हरसा……
पपीहा मन प्यासा ही तरसा…..
सुन पुरवाई लेकर आना, उनको अबकी बार।
कहना उनसे प्यार को तरसा मन प्यासा लाचार॥
ले आना मेरा सावन भी, मत नयना बरसा….
पपीहा मन प्यासा ही तरसा…..
या तुम आओ या जायेगी, तडपती जान हमारी।
विनती सुनलो मत जाना, बिन बरसे अबकी बारी॥
बरसा अबकी प्रेम की बरखा, प्रीत प्रीत बरसा…..
पपीहा मन प्यासा ही तरसा…..
सतीश बंसल