ग़ज़ल : ए मेरे हमदम मेरे हमसफ़र
गहरी आँखों से काजल चुराने की बात न करो।
दिलकश चेहरे से घूंघट उठाने की बात न करो।।
सावन है बहुत दूर ए मेरे हमदम मेरे हमसफ़र।
बिन मौसम ही यूँ तुम सताने की बात न करो।।
इंतज़ार ही किया तुम्हारा हर मुलाक़ात के लिए।
ऐसे में फिर तुम अपना जताने की बात न करो।।
प्यार के परिंदे बन उड़ना ही अच्छा इस जहाँ में।
जालिम है जमाना घर बसाने की बात न करो।।
जहां चलती हो प्रेम के विपरीत खूब आँधियाँ ।
वहां फिर प्यार की शमां जलाने की बात न करो।।
“दिनेश”