“गीत-नवगीत”
“गीत-नवगीत”
गीत कैसे लिखूँ नाम तेरे करूँ
शब्द शृंगार पहलू समाते नहीं
किताबों से मैंने भी सीखा बहुत
हुश्न चेहरा पढ़ें मन सुहाते नहीं॥……. गीत कैसे लिखूँ ……..
ये शोहरत ये माया की मीठी हंसी
लिए पैगाम यह चुलबुली मयकसी
होठ तक सुर्खुरु साथ के ये सगे
गर उतरे हलक में तो देते दगे॥
मान लूँ गर तुम्हें इक हमराज ही
राज भी राज-ए दिल गुनगुनाते नहीं॥…..गीत कैसे लिखूँ ……
हुश्न की चाह ड्योढ़ी पे बदनाम है
इस महफिल में हर शक्स गुमनाम है
जोड़ दूँ कैसे वह डोर इस डोर से
मोड़ लूँ नाव यह कैसे उस छोर से॥
बाढ़ आई बहुत पर ये लंगर मेरे
कभी हिलते नहीं और हिलाते नहीं॥……गीत कैसे लिखूँ …..
महातम मिश्र
प्रिय महातम भाई जी, गीत कैसे लिखूँ करते-करते ही गीत लिखा गया. अति सुंदर.
बहुत शानदार गीत !
सादर धन्यवाद आदरणीय विजय सर जी, आभार