पर सेवा उपकार है, मानवता का सार..
पर सेवा उपकार है, मानवता का सार।
प्रेम समर्पण साधना, जीवन का आधार॥
धन दौलत की लालसा, सत पथ से भटकाय।
पथ भटका पंथी कहो, मंजिल कैसे पाय॥
जब तक विपदा काल था, याद रहे करतार।
सुख सागर में डूबकर, भूल गया संसार।
मन की मैं जो मारता, समझो उसको संत।
अहंकार जब जागता, निश्चित जानो अंत॥
जब तक छोडोगे नही, ऊंच नीच का भाव।
तब तक मिट सकते नही, मानवता के घाव॥
कर्ता और कारक वही, बाकी मात्र निमित्त।
तेरे वश कुछ भी नही, भ्रम पाल मत चित्त॥
कुछ भी तो तेरा नही, काहे का अभिमान।
सब कुछ उसने ही दिये, मान देह अरु प्रान॥
बंसल सब मैं मेट कर, उसका उस पर वार।
दे कर ही मिलता सदा, पाने का अधिकार॥
सतीश बंसल