मुक्तक/दोहा

पर सेवा उपकार है, मानवता का सार..

पर सेवा उपकार है, मानवता का सार।
प्रेम समर्पण साधना, जीवन का आधार॥

धन दौलत की लालसा, सत पथ से भटकाय।
पथ भटका पंथी कहो, मंजिल कैसे पाय॥

जब तक विपदा काल था, याद रहे करतार।
सुख सागर में डूबकर, भूल गया संसार।

मन की मैं जो मारता, समझो उसको संत।
अहंकार जब जागता, निश्चित जानो अंत॥

जब तक छोडोगे नही, ऊंच नीच का भाव।
तब तक मिट सकते नही, मानवता के घाव॥

कर्ता और कारक वही, बाकी मात्र निमित्त।
तेरे वश कुछ भी नही, भ्रम पाल मत चित्त॥

कुछ भी तो तेरा नही, काहे का अभिमान।
सब कुछ उसने ही दिये, मान देह अरु प्रान॥

बंसल सब मैं मेट कर, उसका उस पर वार।
दे कर ही मिलता सदा, पाने का अधिकार॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.