इशू
“ठहर जा। तेरी तो मैं अभी खबर लेती हूँ। रूक शैतान कहाँ भागता है। तेरी खाल न खींच ली आज तो कहना।“
दांत पीसती, भुनभुनाती जया अपनी मचिया छोड़ इशू के पीछे लपकी। बरामदे में फरियादी पूजा ने रोना छोड़ हल्के-हल्के मुस्कुराना शुरु कर दिया था। जया अभी उठी ही थी कि इशू महाराज लोहे का गेट फांद आंगन से बाहर हो गए। मगर जया ने भी ठान ली थी कि आज के आज इशू को सुधार के रहेगी।
“नाक में दम कर दिया है छोकरे ने। पूरा गांव शिकायत करता फिरता है लफंगे की।“
इशू के भाग जाने से कहीं मामला ठंडा न हो जाए इसलिए पूजा ने बुझती आग में घी डाला — ”चाची। कल सोना की कलम लेकर भागा था। मैं स्कूल कैसे जाऊँ चाची। मेरा फीता ले भागा। देखा न आपने देखा न कैसे मुँह चिढ़ा के भागा है। चोर कहीं का।“
”जाएगा कहाँ वो भी कच्छे में, यहीं बाहर ही होगा। अभी पकड़ के लाती हूँ दुष्ट को।“ कहते हुए जया ने धीरे से गेट खोला। अपने आप में मग्न इशू बागीचे में खडा पीले फीते हो हवा में ऐसे लहरा रहा था जैसे किसी आज़ाद देश का नागरिक अपनी आज़ादी का परचम लहरा रहा हो। मां का आना उसे बिल्कुल भान न हुआ। पीछे से आ रही मां की जब परछाई सी पड़ी तो उसने आनन-फानन में गली की ओर भागना चाहा। देखा तो गली में मास्टर जी गुजर रहे थे।
पीछे कुँआ और आगे खाई की स्थिति थी। कच्छे में गली में जा नहीं सकता था, किसी ने देख लिया तो अच्छा मजाक बनेगा। खासकर मास्टर जी, उनके सामने तो इज्जत उतर जाएगी। पीछे भी नहीं मुड़ सकता था, अम्मा ने आज काली रूप धारण किया था। इशू ने इज्जत को शिरोमणि मानते हुए माँ के सामने आत्म समर्पण करना उचित जाना। वहीं रूक गया। जया के हाथों में बड़ी सुलभता से कान आए और आते ही मरोड़ दिए गए।
इशू ने आत्मसमर्पण किया सो किया, मार खाई सो खाई, मगर जिस बात से बचने के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया वह होकर रही। माँ ने कान क्या मरोड़ा इशू की चीख निकल गई। निकलती भी कैसे नहीं? पहले कभी इस बेदर्दी से माँ ने मारा ही नहीं। चीख निकली सो निकली मगर जाकर सीधे मास्टर जी के कान में पड़ गई। टाँगे के घोड़े की तरह एकदम सीध में जा रहे मास्टर साहब तुरंत साइकिल से कूद पड़े। चीख का स्रोत ढूँढने लगे। देखा तो जया उसे पीटते-पीटते गली में ले आई थी।
‘बहुत शरीर हो गया है। देह में डर नाम की चीज़ ही नहीं है।‘ मार खाकर भी इस समय इशू को दर्द नहीं हो रहा था बल्कि चिंता सता रही थी कि मास्टर साहब उसे कच्छे में देख रहे होंगे और मास्टर साहब देख भी रहे थे वह भी कुटिल मुस्कान के साथ। उनकी नज़र से बचने के लिए वह जया के पीछे-पीछे छिपना चाह रहा था। मगर..
‘भागता कहाँ है? आज तो नहीं बचेगा?”
”स्कूल…स्कूल का टाइम हो गया…अम्मा छोड दे…स्कूल भी जाना है” गोल-गोल घूमाते हुए वह वापस आंगन की ओर भाग लिया। आंगन में खी-खी कर देखती पूजा को देख इशू का पारा चढ़ गया। उसने सोचा सारी फसाद की जड़ यही है। “चुड़ैल! तू तो गई काम से। देख तेरे साथ मैं क्या करता हूँ।“
“अब तो सुधार जा। नहीं तो देख फिर मैं चाची से शिकायत करती हूँ कि नहीं?”
”हाँ; मोटी भैंस, तेरी तो देख मैं काली माई को बलि चढ़ाऊँगा। आधी रात को।“
“चाची! चाची। देखो इशू मुझे मोटी भैंस बोल रहा है।“
इतने में जया ने आंगन में प्रवेश किया।
“और नहीं तो चुनारगढ़ की राजकुमारी बुलाऊँ। शादी होगी गंगू तेली के साथ, बैल की जगह तुझे जोतेगा न तो शिकायत करना भूल जाएगी। साँड जैसी तो हो गई है।“
”इशूउउउ….टुकड़े-टुकड़े कर दूँगी आज तेरे। तू जाता है स्कूल या अभी पेट नहीं भरा है मार खा-खा के।“
जया की धमकी सुन इशू सीढियों से ऊपर भागा और पहले तले पर चढ़कर चिल्लाया –“शादी क्यूँ नहीं करा देती इस चुगलखोर की। इतनी बड़ी घोड़ी हो गई है, अस्तबल में रखने लायक।“
जया ने बिफर कर कहा- “आऊँ…आऊँ मैं ऊपर”
इस बार इशू दूसरे तले पर चढ़ गया और अपने कमरे में जाकर यूनिफार्म पहनने लगा। उसका स्कूल जाने का बिल्कुल मन नहीं था। रह-रहकर दिमाग में मास्टर जी की कुटिल मुस्कान कौंध जा रही थी। इतने में इशू ने पोखर के किनारे वाले नीम के पेड़ से आ रही सीटी की आवाज सुनी। अपने साथियों का संकेत पाकर इशू का चेहरा खिल गया। उसने सोचा कि हो न हो उसके साथी कोई न कोई हल ज़रूर निकालेंगे। फटाफट तैयार हो इशू ने बस्ता टाँगा और एक ही सांस में दोनों तले उतरता हुआ आंगन के पार हो गया। अम्मा हाथ में खाने का डिब्बा लिए चिल्लाती रह गई “ठहर नालायक। ठहर जा।“ मगर नालायक नहीं ठहरा।
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नीम के नीचे मंडली जमी थी। छोटा राजन इस गैंग का लीडर था, जिसका असली नाम माँ-बाप ने बड़े प्यार से राजेन्द्र रखा था और जिसे गांव के लोग अबतक भूल चुके थे। इशू ने दोस्तों को बताया कि वह स्कूल नहीं जाएगा क्योंकि उसे शक़ है कि मास्टर उसका मज़ाक उडाएगा।
छोटे राजन ने चुटकियां बजाते हुए शेखी बगारी – ‘उस मास्टर में यह हिम्मत नहीं आ सकती। उसे तो हम चुट्कियों में मसल देंगे। तू चल स्कूल। उसने मुँह खोला तो देख लेंगे उसे हम।“
कक्षा चार के लड़को के यह तेवर देख जैसे नीम भी हंस रहा था और रह-रहकर सूखे पत्तों की फुहार उन पर छोड़ रहा था।
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आज की आख़िरी क्लास उन्हीं मास्टर जी की थी। कक्षा को घूरकर उन्होंने देखा और सबको देखते-देखते जब निगाह इशू पर पड़ी तो हल्के से मुस्कुरा दिए। उनकी एक मुस्कान पर इशू कट कर रह गया। उसने अपनी मुठ्ठी भींचते हुए और दाँत पीसते हुए मास्टर जी को देखा। मास्टर जी उसका रौद्र रूप देख थोड़ा सकपकाए फिर पढाना चालू कर दिया। बॉडमास का रूल समझाते हुए मास्टर जी सब कुछ भूल गए। सभी छात्र भी लग्न से सीखने लगे और नहीं सीख रहे हों तो लग्न से सीखने का नाटक करने लगे। मगर इशू न कुछ भूला और न नाटक ही कर पाया। आंखें तरेर कर केवल मास्टर जी को देखता रहा। मास्टर जी ने बोर्ड पर एक सवाल हल करके दिखाया और पूछा ‘अब सबको समझ आ गया?’ पूरी कक्षा एक साथ चिल्लाई ‘जी मास्टर जी’। मगर इशू केवल दाँत पीसता रहा। ‘लगा लोगे ऐसा सवाल’ ‘जी मास्टर जी’। इशू अब भी चुप था। मास्टर जी ने इशू की चुप्पी को नोट किया। उन्होंने एक सवाल बोर्ड पर लिखा और पूछा ‘कौन हल करके दिखाएगा?’ कक्षा के काफी बच्चों ने हाथ उठाया। मास्टर जी को इशू का शांत विद्रोह अब खटकने लगा था। अत: इस बार मास्टर जी ने इशू को सबक सीखाने की सोची और बोले ‘ईश्वरचंद्र! इसे तुम लगा के दिखाओगे।‘ इशू ने लाल आँखों को सिकोड़ते हुए पीसते हुए दांतों के बीच से अकड़कर जवाब दिया –‘मुझे नहीं आता।‘ मास्टर ने व्यंग्य का ब्रह्मास्त्र छोड़ते हुए कहा –‘तो क्या आता है? गली में नंगा घूमना? सवेरे तुम्हीं थे न नंगे घूम रहे थे?’ पूरी कक्षा हंसने लगी और इशू के दिमाग में विस्फोट हो रहा था। उसे पूरा भरोसा था कि उसके साथी उसके पक्ष में मास्टर को कुछ न कुछ सुनाएंगे ही। उसने पीछे मुड़कर देखा पूरी कक्षा तो ठहाके लगा रही थी मगर वे भी अपना मुँह दबाए हंस रहे थे। अब तो इशू के ऊपर बिजली सी गिर पड़ी। उसे अपना मोर्चा अब अकेले ही संभालना था। सो फट पड़ा। मास्टर की ओर उंगली उठाकर बोला –‘तुझे तो मैं छोडूँगा नहीं।‘ यह कहते हुए वह अपना बस्ता लेकर लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ कक्षा से बाहर निकल गया।
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आसमान में टिमटिमाते तारे इशू की भिन्न-भिन्न प्रतिज्ञाओं के गवाह बन रहे थे। इशू अब बड़ा हो गया था इसलिए छत पर अकेले ही सोता था। वह इसलिए भी बड़ा हो गया था क्योंकि छोटा राजन बड़ा हो गया था और अपनी छत पर अकेले सोता था। छोटा राजन का मकान गांव के किनारे पर था इसलिए किसी को उसकी छत दिखाई नहीं पड़ती और न ये ही दिखाई पड़ता था कि वह अकेले सोता है या नहीं। मगर इशू की छत पूजा को साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी। पूजा इशू को अलटते-पलटते और फिर बाद में टहलते हुए देख कर सो नहीं पा रही थी। उसे बार-बार इशू की बात याद आ रही थी कि वह उसकी काली माई को बलि चढाएगा। उसने कहा तो कहीं कर न दे। यहां उसे नींद लगी और वहां वो कूद कर आ जाए और नींद में ही उसका सिर काट ले जाए।
आधी रात तक दोनों जगे रहे। आधी रात के बाद कब सो गए पता नहीं। सवेरे पूजा तो समय से जग गई मगर इशू रात की नींद पूरी करता रहा और मां ने उसे जगाया। होना तो यह चाहिए था कि रात के अंधेरे की तरह इशू की प्रतिज्ञाएं भी काफूर हो जाएं, जैसा कि हर बार हुआ करता था। परंतु इस बार की प्रतिज्ञा अटल, अविचल, अविनाशी निकलीं, क्योंकि उठते ही उसने देखा कि पिताजी घर पर नहीं है और दीवार पर लटक रहा गंडासा उतार लाया। नल के पास बैठकर उसे पत्थर पर घिसना चालू किया। माँ दालान में ही चावल फटक रही थी। ध्यान ही नहीं गया कि वह दातुन नहीं कर रहा बल्कि गंडासा तेज़ कर रहा है।
पूजा गेट के अंदर आई ही थी कि इशू को गंडासा तेज करते हुए देख चीख पड़ी और उल्टे पाँव भागी। चीख सुनकर माँ की चेतना जागी। नल के पास पहुँचती तो अजब तमाशा देखा। ज़रा सी देह लिए इशू एक बहुत बड़ा गंडासा पत्थर के एक टुकड़े पर तेज़ करने के लिए रगड़ रहा है और साथ ही काले नाग की तरह फुंफकार भी रहा है। चेहरे की रंगत एकदम पलाश हो रखी थी। पहले तो माँ उसकी तेज़ी देख कर हैरान थी कि इस नन्हीं सी जान में इतना दम कहाँ से आया। फिर उसकी कारगुज़ारियाँ याद कर डर गई। अपने आप से बुदबुदाई ‘होश में तो है लड़का। देह में जरा डर नहीं। कितना शरीर हो गया है। जाने आज क्या शरारत सूझी है।‘
मां से बेखर गंडासा रगड़ रहा था कि माँ ने कान पकड़कर कान के बल ही सारा शरीर ऊपर खींच लिया।
“हें! बता तो ज़रा। ये कर क्या रहा है? इतने बड़ा गंडासा कहाँ चलाने जा रहा है? हें? बोलेगा कुछ?”
इशू ने अपना लाल कान छुड़ाया और तनकर खड़ा हो गया। दांत की चक्की चलाते हुए बोला “मास्टर जी की गर्दन पर।”
जया भौंचक्क सी उसे देखती रही। फिर कट्टा उससे छीनकर अलग फेंक दिया और उसे पकड़कर घमाघम पीठ पर देना शुरू किया। पर इस बार इशू भागा नहीं वहीं खड़ा रहा और मार खाता रहा। जया ने माथा ठोंक लिया। गंडासा उठाया और घर में ले जाकर सबसे ऊँची खूँटी पर टाँग दिया। दातुन उसकी ओर फेंका – “चल दाँत धो और चलता बन। दोबारा गंडासे के तरफ देखा न आंखें नोच कर चूल्हे में झोंक दूँगी”।
इशू ने लाल आँखें कर माँ को ऐसे देखा कि जया भी एक पल के लिए डर गई कि कहीं उसकी गर्दन पर….।
”चल उठा दातुन”
इशू भारी कदमों से आया और आँगन के बीच फेंके दातुन को उठाकर बेमन से दातुन करने लगा।
घर के कामों में जया ऐसी उलझी की एक डेढ घंटे के अंतराल में सुबह की सारी घटना भूल गई। जब कभी याद भी पड़ता था तो एक बार खूँटी पर टंगा गंडासा निहार लेती थी। इशू को बस्ता पकड़ाकर जब तक गेट के बाहर नहीं कर दिया तब तक नीचे ही रही। उसके जाने के बाद ऊपर की मंजिल पर चली गई। उसने सोच रखा था कि आज बक्सों से रजाई गद्दे और पुराने ऊनी कपड़े निकालकर धूप दिखाएगी। उसे तो भनक भी नहीं लगी कि उसके ऊपर आते ही गंडासा खूंटी पर से कब गायब हो गया।
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आज दोस्तों ने सीटी नहीं बजाई, इशू पहले ही घर से निकल चुका था। वह उस नीम के नीचे भी नहीं गया क्योंकि दोस्त तो सारे दग़ाबाज़ निकले। उनके पास क्या जाना। मास्टर के बाद तो दरअसल उनका नंबर आना चाहिए। लेकिन अभी तो उसका पूरा ध्येय मास्टर की गर्दन पर है।
दूर से चिड़िया की आंख जैसा दिखने वाला स्कूल अब पास आ गया था। स्कूल के इर्द-गिर्द कई बच्चे इकठ्ठा हो गए थे और धमाक-चौकड़ी मचा रहे थे। स्कूल शुरू होने में अभी वक्त था। राह में चल रहे कई बच्चों ने इशू को भारी-भरकम गंडासे के साथ देख लिया था। जल्दी-जल्दी स्कूल पहुंचकर उन बच्चों ने ताज़ा खबर की तर्ज पर यह सूचना देना चालू कर दिया।
आठवीं कक्षा के दरवाज़े पर खड़ी पूजा अपनी चुटिया घुमा-घुमाकर संध्या से बातें कर रही थी। तभी भागता-दौड़ता चौथी कक्षा का एक लड़का वहाँ पहुँचा।
“आप पूजा हो न!”
“कौन-सी वाली पूजा को ढूँढ रहे हो। समूह प्रार्थना गाने वाली पूजा अभी तक आई नहीं है।“
“नहीं-नहीं। इशू की बहन हो न आप। आप ही के चचा का लड़का है न।“
“हाँ-हाँ। क्या हुआ? क्या कर दिया इशू ने अब?”
“वो एक बड़ा सा भारी सा तेज़ धार वाला गंडासा लेकर…एकदम गुस्से से फुंफकारता हुआ स्कूल की तरफ ही आ रहा है। एकदम काला-काला लोहे का बड़ा, बहुत बड़ा गंडासा लेकर इधर ही आ रहा है।“
इतना कहकर वह पिद्दी इस ताज़ा खबर को आगे फैलाने निकल गया।
पूजा के हाथ-पांव ठंडे पड़ गए। उसकी आंखों के आगे चौराई में बनी काली माता की मूर्ति नाचने लगी। पसीना-पसीना होती पूजा को देख संध्या ने पूछा – “क्या हुआ?”
“इशू क्या सच में कट्टा लेकर स्कूल आ रहा है।“
“अरे! इन नालायकों की बात में तू क्या आ गई। इन छोटी क्लास वालों को तो कोई काम ही नहीं है। सुबह-सुबह बस मज़ाक-मस्ती करते रहते हैं। वरना तू ही बता भला कोई गंडासा लेकर स्कूल आता है क्या? स्कूल में गंडासे का क्या काम? कॉपी-किताब का बोझ ढोने में तो इनकी नानी मरती है। भला गंडासा उठाकर कौन लाएगा। प्रिंसिपल स्कूल से बाहर न कर देगा।“
यहाँ संध्या की ज़बान रहट की तरह चल रही थी, वहाँ पूजा की दृष्टि स्कूल को आनेवाली सड़क से चिपकी थी। कुछ ही क्षण बाद इशू सच में गंडासा लेकर आता हुआ दीख पड़ा। देखते ही पूजा के होश गुम। उसकी आँखें फैल गई और वह वहीं बेहोश हो गिर पड़ी। संध्या ने उसे संभालने का बहुत प्रयास किया पर बहुत करने पर भी वह गिर ही पड़ी। संध्या उसका सर गोद में लेकर औरों को मदद के लिए पुकारने लगी।
उधर किसी ने दौड़कर इशू को भी खबर दी कि तेरी दीदी बेहोश हो गई है। इशू भी उधर ही दौड़ पड़ा।
संध्या के कहने पर कुछ सहपाठी दौड़कर पानी ले आए। जब पूजा के चेहरे पर कुछ छींटे फेंके गए तो उसने आंख खोली और पाया कि वह संध्या की गोद में लेटी हुई है और चारों ओर छोटी-बड़ी कक्षा के बच्चों से घिरी हुई है। बाईं ओर नज़र घुमाई तो इशू को बैठा देखा और फिर से घबरा गई। जबकि इशू खुद घबराया हुआ था और उसे होश में लाने के लिए झकझोक रहा था।
“दीदीया! दीदीया! उठ जा दीदीया।“
“तू इशू..तू तो मुझे मारने वाला है न! मेरी गर्दन काटेगा।“
“नहीं दीदीया मैं क्यूँ करूँगा ऐसा? तो तो मेरी दीदीया है।“
“फिर गंडासा क्यूँ लाया है? मेरी गर्दन काली माई को चढ़ाने के लिए न?”
“हट पगली! मैं तो मास्टर के लिए लाया हूँ।“
“मास्टर के लिए? क्यूँ?”
“क्योंकि उसने पूरी किलास के सामने मेरी बेइज़्जती की।“
“तू पागल है। इसके लिए तू उसे मारेगा।“
“और नहीं तो क्या? छोडूँगा नहीं उसको। उसने मुझे सब बच्चों के सामने नं…।“
इशू कहते-कहते रुक गया। उसे ध्यान आया कि वह चारों ओर स्कूल के बच्चों से घिरा है।
“तू निछान पागल है। सोचा है कभी कि मेरे बेहोश होने पर तू इतना घबरा गया। अगर मास्टर को कुछ हो गया तो उसके भाई-बहन और भी उसके घर के लोग कैसे घबरा जाएंगे।“
इशू ने थोड़ा सोचा मगर फिर वही राग अलापा।
“मगर दीदीया उसने मेरी बेइज़्जती की है।“
पूजा ने देखा ये तो अपना सुर छोड़ ही नहीं रहा है।
“अच्छा….तो इसके लिए तू अपना और दूसरे बच्चों का नुकसान करेगा।“
“नहीं। मैं तो मास्टर की गर्दन काट के उसका नुकसान करूँगा।“
पूजा ने मुंह टेढ़ा कर इशू की नकल उतारी।
“गर्दन काटकर उसका नुकसान करूँगा…. जैसे तू उसकी गर्दन तक पहुंच जाएगा… और तेरी इस नादानी में अगर मास्टर को चोट भी आ जाए तो वो तो चलता बनेगा। तुम लोगों की परीक्षा का फार्म कौन भरेगा। तू डूबेगा और अपने साथ सब बच्चों को डुबाएगा। फार्म नहीं भरा तो सब चौथी की परीक्षा फिर अगले साल देना। बैठे रहना एक ही क्लास में।“
“हां दीदीया। तू ठीक कह रही है दीदीया।“
“चल जा अब प्रार्थना शुरू होने वाली है।“
वहां इतने बच्चे खड़े थे मगर किसी ने नहीं पूछा कि चौथी कक्षा के लिए कौन-सा फार्म?
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इशू ने स्कूल खत्म होने तक के लिए दोस्तों के संग मिलकर गंडासा एक पेड़ की कोटर में छिपा दिया था। मगर इस बीच मास्टर को भनक लग गई। लगती भी कैसे नहीं। छोटा सा तो स्कूल था। इधर से बात उधर फैलने में देर न लगती। उस पर उत्पाती बच्चों की कमी नहीं। तुरंत बात को इधर से उधर फैला देते। मास्टर का विश्वास पात्र बनने की ललक तो कई-एक बच्चों में थी।
मास्टर ने भी चुपचाप गंडासे की खूब खोजबीन कराई। मगर गंडासे का पता न चला। जब क्लास शुरू हुई तो मास्टर डरते भी रहे कि यह पिद्दा कहीं से अचानक हमला करेगा तो घायल हो जाने की पूरी-पूरी संभावना है। मास्टर सचेत हो कर पढ़ाते रहे और इशू के प्रति व्यवहार भी मीठा ही रखा।
दूसरी ओर इशू अपने किए गए उपकार प्रसन्न होता रहा है। उसने एक साथ दो-दो उपकार किए। मास्टर के परिवार का उपकार तो किया ही साथ ही साथ उसने लोक हित में या यों कहें कि क्लास-हित में अपनी बदले की भावना को त्याग दिया।
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