मुक्तक
मधुशाला छन्द पर मेरा आज का प्रयास
अपना तुम्हें बनाकर दिल में, मैने ये सपना पाला ।
तुम ही रहते हो नयनो में बनकर अश्कों की माला ।
जब जब देखा करती तुमको विचार यही मुझे आता ।
नजर लगे जो तुम्हें किसी की बन जाऊं टीका काला । 1
कहते हैं सब लोग यहाँ नहीं, प्रेम से बडी मधुशाला ।
तुमसे ही सीखा है मैंने, पीना प्रेम भरा प्याला ।
प्रेम को सबकुछ माना लिया, प्रेम अमर धन है पाया ।
तुमसे ही पाया सबकुछ अरु तुमसे ही है ये हाला
अनुपमा दीक्षित मयंक