मुक्तक/दोहा

मुक्तक

मधुशाला छन्द पर मेरा आज का प्रयास

अपना तुम्हें बनाकर दिल में, मैने ये सपना पाला ।
तुम ही रहते हो नयनो में बनकर अश्कों की माला ।
जब जब देखा करती तुमको विचार यही मुझे आता ।
नजर लगे जो तुम्हें किसी की बन जाऊं टीका काला । 1

कहते हैं सब लोग यहाँ नहीं, प्रेम से बडी मधुशाला ।
तुमसे ही सीखा है मैंने, पीना प्रेम भरा प्याला ।
प्रेम को सबकुछ माना लिया, प्रेम अमर धन है पाया ।

तुमसे ही पाया सबकुछ अरु तुमसे ही है ये हाला

अनुपमा दीक्षित मयंक

अनुपमा दीक्षित भारद्वाज

नाम - अनुपमा दीक्षित भारद्वाज पिता - जय प्रकाश दीक्षित पता - एल.आइ.जी. ७२७ सेक्टर डी कालिन्दी बिहार जिला - आगरा उ.प्र. पिन - २८२००६ जन्म तिथि - ०९/०४/१९९२ मो.- ७५३५०९४११९ सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन छन्दयुक्त एवं छन्दबद्ध रचनाएं देश विदेश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रो एवं पत्रिकाओ मे रचनाएं प्रकाशित। शिक्षा - परास्नातक ( बीज विग्यान एवं प्रोद्योगिकी ) बी. एड ईमेल - adixit973@gmail.com