ग़ज़ल (हिन्दी हमारी जान है)
ग़ज़ल (हिन्दी हमारी जान है)
बह्र:- 2212 2212
हिन्दी हमारी जान है,
ये देश की पहचान है।
है मात जिसकी संस्कृत,
माँ शारदा का दान है।
साखी कबीरा की यही,
केशव की न्यारी शान है।
तुलसी की रग रग में बसी,
रसखान की ये तान है।
ये सूर के वात्सल्य में,
मीरा का इसमें गान है।
सब छंद, रस, उपमा की ये
हिन्दी हमारी खान है।
उपयोग में लायें इसे,
अमृत का ये तो पान है।
ये मातृभाषा विश्व में,
सच्चा हमारा मान है।
इसको करें हम नित ‘नमन’,
भारत की हिन्दी आन है।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया
14-09-2016