गीतिका/ग़ज़ल

गजल-***इत्र बिखर जाता है***

सर झुकाऊँ तो ये सर जाता है.
ना झुकाऊँ तो हुनर जाता है.
जितना सोचूँ कि भुला दूँ उसको,
ध्यान उतना ही उधर जाता है.
कोई डरता न कभी ज़ुर्मों से,
कोई सोचे तो सिहर जाता है.
माँ से कह देता है बेटा सब कुछ,
बाप पूछे तो मुकर जाता है.
दिल पे चढ़ता न कभी रंग उसका,
जो भी नज़रों से उतर जाता है.
बाप को बेटा अगर गाली दे,
बाप तो जीते जी मर जाता है.
सोचता रहता बहाने कितने,
देर से जब भी वो घर जाता है.
इश्क़ में कोई बिगड़ जाता तो,
इश्क़ से कोई सँवर जाता है.
जब भी माँ हमको दुआ देती है,
सब बलाओं का असर जाता है.
उसके आने की ख़बर मिलते ही,
इत्र घर भर में बिखर जाता है.

डॉ. कमलेश द्विवेदी
मो.9415474674