जन गण की आशाएं भी है
जन गण की आशाएं भी है
जन मन की पीड़ाएं भी है
दोनों की अपनी परिभाषा
दोनों की अपनी मजबूरी
हर कोई जन मन के रथ को
मन मर्जी से हाँक रहा है
चढे मुखौटों के भीतर से
जन गण सबको झाँक रहा है
जाने कितनी और बढेगी
जन की गण की है जो दूरी…
दोनों की अपनी परिभाषा
दोनों की अपनी मजबूरी…
कल्पित चेहरे कल्पित बातें
बदली बदली परिभाषाएँ
भ्रमित भ्रमित से पथपर्दर्शक
ओझल ओझल हुई दिशाएँ
सत्तासुख की उडी धूल ने
ढकी रोशनी पूरी पूरी…
दोनों की अपनी परिभाषा
दोनों की अपनी मजबूरी…
दोष लगाया है दीपक पर
तेज हवा ने अंधियारों का
कैसे उत्तर देगा बोलो
जन मन दोनों के नारों का
जीवन बिना हवा नामुमकिन
दीप बिना दुनियाँ बे नूरी…
दोनों की अपनी परिभाषा
दोनों की अपनी मजबूरी…
राजनीति के गलियारों की
अभिलाषाएं मचल रही हैं
जन से गण के रिश्तों की नित
परिभाषाएँ बदल रही हैं
सत्ता से जन की सत्ता की
आस सदा ही रही अधूरी…
दोनों की अपनी परिभाषा
दोनों की अपनी मजबूरी…
सतीश बंसल
१६.०३.२०१७