साध लिया है मौन सत्य ने, झूठ बराबर बोल रहा है
साध लिया है मौन सत्य ने, झूठ बराबर बोल रहा है।
आड़म्बर ने आसन पाया, धर्म भटकता डोल रहा है।।
नैतिकता अपहरित हुई है, तार तार हैं मर्यादाएं।
मूल्यहीन होती मानवता, रक्तहीन हो चली शिराएं।।
निड़र हुआ अँधियारा इतना, दिन का उड़ा मखोल रहा है…
आड़म्बर ने आसन पाया, धर्म भटकता डोल रहा है…
फंदा कसा हुआ खेतों पर, खुली छूट है उधोगों को।
गलियों पर कानूनी बंदिश, हर आजादी राजपथों को।।
रोज रोज होता घोटाला, खोल सभी की पोल रहा है…
आड़म्बर ने आसन पाया, धर्म भटकता डोल रहा है…
चीख चीख कर थकी अयोध्या, मंदिर का निर्माण कराओ।
घर की खाली गुल्लक बोली, काला धन वापिस तो लाओ।।
घाटी में दुश्मन का नारा, जिग़र हमारा छोल रहा है…
आड़म्बर ने आसन पाया, धर्म भटकता डोल रहा है…
सतीश बंसल
०६.०३.२०१८