ग़ज़ल – मोहब्बत
फूल सी ज़िन्दगानी हुई,
जब मोहब्बत सुहानी हुई।
जिन्दगी ठहरी ठहरी सि थी
आप आए रवानी हुई ।
आइना नाज़ करने लगा
आपकी मेहरबानी हुई।
हम सनम के लिए मिट गए
ये खबर क्या पुरानी हुई??
अश्क अब बह रहे रात दिन
इश्क की ये निशानी हुई ।
बेवफ़ाई का आलम है ये।
हम मिले ये कहानी हुई।
हम जिसे समझे उल्फत अनु
जिस्म की खींचतानी हुई।
— अनुपमा दीक्षित मयंक