गीतिका/ग़ज़ल

आदमी

डालो जिधर निगाह, है मजबूर आदमी।
दर दर भटक रहा है, मजदूर आदमी।
है बेबसी निगाह में, रोज़गार की लिए,
अब तक बना हुआ है, गफूर आदमी।
सड़कों पे बोझ ढोता है, दिन ढले तलक,
फुटपॉथ पे सोता है, थक के चूर आदमी।
खुशियों की ख़्वाहिशों में, खोया हुआ है यूं ,
के उम्र से पहले हुआ, बेनूर आदमी।
तलाश-ए-रोटी में रहा, है घूम गोल गोल,
दुनियां से हुआ गोल ,बदस्तूर आदमी ।
पुष्पा अवस्थी “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है