जज्बात
खुद से खुद को समझाया है
रोते दिल से भी तुम को हसाया है
मेरी पहली मोह्हबत और
आखरी दोस्त हो “तुम ”
अगर देखने या छूने से ही होती मोह्हबत
तो मीरा का श्याम न होता
बिना दीदार भी कोई यार हो सकता है
प्यार पहले से भी ज्यादा
हर बार हो सकता है
“तुम ” से दूर रहना सजा है मेरी
“तुम ” को है मंजूर तो ये रज़ा है मेरी
तुम्हारा होना कोई इफ्तफाक नहीं
“तुम ” हो तो मै हूँ वरना कोई जज्बात नहीं