कविता

जज्बात

खुद से खुद को समझाया है
रोते दिल से भी तुम को हसाया है

मेरी पहली मोह्हबत और
आखरी दोस्त हो “तुम ”

अगर देखने या छूने से ही होती मोह्हबत
तो मीरा का श्याम न होता

बिना दीदार भी कोई यार हो सकता है
प्यार पहले से भी ज्यादा
हर बार हो सकता है

“तुम ” से दूर रहना सजा है मेरी
“तुम ” को है मंजूर तो ये रज़ा है मेरी

तुम्हारा होना कोई इफ्तफाक नहीं
“तुम ” हो तो मै हूँ वरना कोई जज्बात नहीं

रवि प्रभात

पुणे में एक आईटी कम्पनी में तकनीकी प्रमुख. Visit my site