राजनीति

विरोध व्यक्ति का नहीं, शक्ति का कीजिए।

शक्ति की आशक्ति, एक सामान्य मनुष्य को भी आतातायी होने पर विवश कर देती है। जब शक्ति के पीछे,दण्ड का भय और जिम्मेदारी की जवाबदेही खत्म हो जाए,तो समाज आक्रान्त हो जाता है। शक्ति कभी भी स्वयं, दुरुपयोग नहीं करती जब तक कि शक्ति से समक्ष दबने वाले लोग हथियार डाल कर विरोध करना न छोड़ दें,वरना बर्बर बरतानिया हुकूमत के सामने एक लाठी लिए नंग-धरंग महात्मा देश की आज़ादी के सपने कभी पूरा नहीं कर पाता। मार्क्स वेबर कहते हैं- शक्ति के प्रदर्शन के लिए भीरू और मानसिक रूप से अपंग भेड़ चाल जैसी जनता की भी आवश्यकता होती है।
ऑस्कर विजेता फ़िल्म सिण्डलर्स लिस्ट में बहुत ही मार्मिक संवाद है- “शक्ति क्या है?”
“अगर आपके पास किसी को जान से मारने की हर वाजिब वजह और आप फिर भी उसे माफ कर देते हैं, तो यह शक्ति है और आप दुनिया के सबसे शक्तिशाली पुरुष हैं”
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भी सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय कहते थे”जुल्म करने वालों को जब तक अपने जुल्म का अहसास न हो,डटे रहो। जुल्म करने वाले से कोई घृणा का भाव नहीं होना चाहिए बल्कि जुल्म से घृणा होना चाहिए।जुल्म करने वाला भी इंसान है,उसमें भी परिवर्तन की चाह अंतिम साँस तक बची हुई होती है। हर साधु का एक अतीत होता है और हर पापी का एक भविष्य।”
इस देश ने आपातकाल को भी देखा है और सत्ता के मद में चूर शासकों का पतन भी। जब उसी शासक ने दम्भ का दामन छोड़ दिया तो जनता ने दुगुने जोश से उसे उसी ताज पर बिठा दिया। यह लोकतंत्र की खूबसूरती है कि जनता किसी को राजा तो किसी को रंक बना सकती है। शक्ति अगर नियमों के दायरे में इस्तेमाल किए जाएँ तो एक स्वस्थ जनतंत्र की पराकाष्ठा तक पहुँचा जा सकता है। वरना इतिहास ने शक्ति के गलत इस्तेमाल से हिटलर और मुसोलिनी का उदय भी देखा है और अपनी प्रजा के ही हाथों उनका खून भी होते हुए देखा है। और किसी ने बहुत सही कहा है – “तुमसे जो पहले यहाँ तख्तनशीं था,
उसे भी खुद के खुदा होने पर इतना ही यकीन था”

शक्ति कोई “जीरो सम” गेम नहीं होता। आप अपनी शक्ति का प्रयोग दूसरे की कमजोरी की वजह से जरूर करते हैं लेकिन शक्ति इस्तेमाल करने और दिखाने के कई रूप होते हैं। अगर आप छात्रों पर राजनीतिक शक्ति का प्रयोग कर के उन्हें क़ाबू में रखना चाहते हैं तो छात्र अपनी सांस्कृतिक और युवा शक्ति से आप पर पलटवार भी कर सकते हैं। और इसी का चरितार्थ बहुत कुछ स्वराज आंदोलन के समय देखने को मिला। शक्ति हमेशा अपने शासकों का हाथ बदलती रहती है और हर शासक अपनी सत्ता पर काबिज रहने की हर कोशिश करता है। अतैव शक्ति के मद में ऐसा कुछ न कर बैठे कि अगला शासक आपके प्राण का प्यासा हो जाए।
“दुश्मनी जरूर करो,पर इतनी जगह जरूर रखो कि कभी मिलो तो आँखें मिला सको।

— सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com