सत्ता के ठग
दार्शनिक ने दर्शन बहाए, “शेर उसे कहते हैं, जो दूसरे का आहार नहीं छीने! लेकिन उन्होंने छिना ! हर पिछड़ा वर्ग उन्हें प्यार करता था, तबतक ! खुद नहीं, तो बीवी को सत्ता ! बीवी नहीं, तो बेट्टे को सत्ता ! उस पार्टी में एक से एक कद्दावर नेता रहने के बावजूद ! सत्ता के इर्दगिर्द रहने से ही समाजसेवा नहीं होती, हम कार्यकर्त्ता की तरह बाहर रहकर भी होती है।” इस दर्शन से प्रभावित हो कई बेरोजगार दार्शनिक हो गए !