मेरी आवाज़
आत्मा की आवाज
रह जाती है अनसुनी
कई बार
दब जाती है
दबाबों में
कभी मेरे
कभी तेरे
लाचार
सिसकती है
घुटती है
रातों के सन्नाटों में
घुट घुट और
सिसक सिसक कर
दम तोड़ जाती है
एक दिन
और
उसकी अर्थी
होती है मेरे ही
कांधे पर
आत्मा की आवाज
रह जाती है अनसुनी
कई बार
दब जाती है
दबाबों में
कभी मेरे
कभी तेरे
लाचार
सिसकती है
घुटती है
रातों के सन्नाटों में
घुट घुट और
सिसक सिसक कर
दम तोड़ जाती है
एक दिन
और
उसकी अर्थी
होती है मेरे ही
कांधे पर