मैं सिर्फ कहने भर को
अन्नदाता बनाम किसान हूँ
पर हूँ बेबस
कभी मौसम के आगे
कभी अच्छी फसल या उसकी बिक्री के आगे
कभी पटवारी कभी सरकार के आगे
कभी कर्ज़ कभी मुआवजा के आगे
कभी भूख कभी बेबसी के आगे
इतनी बेबसी और बेबस
कैसा फिर मैं अन्नदाता बनाम किसान
जब पीढ़ियों से बस सहता आ रहा दर्द ही
कभी लगा लेता मौत के गले फांसी लगाकर
कभी तिलतिल मार डालती बीमारी
कभी लाचारी परिवार की
कभी आँसू बेबसी के
फिर मैं कैसा अन्नदाता बनाम किसान
खेतों को सिचूँ अपने पसीने, मेहनत से जिस से भरे पेट सभी का
पर मेरे हिस्से की न ही खुशी
न ही खुशहाली, न ही अच्छी ज़िन्दगी मिली कभी मिली
तभी तो
मैं सिर्फ कहने भर को
अन्नदाता बनाम किसान हूँ
पर हूँ बेबस सिर्फ बेबस।।
— मीनाक्षी सुकुमारन