बाल कविता
सुनो न मम्मी बात ज़रा सी
देखो मुझको हो गई खांसी
ये दुख भी क्या कम है मेरा
जमा हुआ बलग़म है मेरा
कुछ -कुछ देखो सर्दी भी है
नाक से आता पानी भी है
दर्द भी रुक कर बढ़ जाता है
शाम में फीवर में चढ़ जाता है
ये सब सुनकर बोली मम्मी
गुस्से में मुंह खोली मम्मी
और शाम तक खेलने जाओ
मफलर, टोपी नहीं लगाओ
पीते हो तुम फ्रिज का पानी
ज़िद में करते हो मनमानी
तौर -तरीके से जो चलोगे
कभी न तुम बीमार पड़ोगे
— डा जियाउर रहमान जाफरी