कविता

मन का मीत

भावो के उद्गार से बन जाते हैं गीत,
जो मन को अच्छा लगे वही  है मन का मीत|
निकल डगर पर मैं चली जहां प्रीत की रीत,
प्रेम भरे एहसास से बन गया जो मनमीत|
उस दिन से जीवन मेरा बन गया एक संगीत,
ह्रदय प्रफुल्लित हो गया पाकर तेरी प्रीत|
हर दिन एक त्यौहार सा और सावन के गीत,
सतरंगी जीवन लगे जब से पाई प्रीत|
नवजीवन मुझको मिला  बधी प्रीत की रीत,
“रीत” कहे मनमीत  बिन कुछ ना भाए  मीत|

— रीता तिवारी “रीत”

रीता तिवारी "रीत"

शिक्षा : एमए समाजशास्त्र, बी एड ,सीटीईटी उत्तीर्ण संप्रति: अध्यापिका, स्वतंत्र लेखिका एवं कवयित्री मऊ, उत्तर प्रदेश