ग़ज़ल
कभी ज़िगर ए जोश हो जाते हैं लोग ।
कभी जुवां खामोश हो जाते हैं लोग ।।
अक्सर अल्फाज़ ए राज़ जाने बगैर ,
कैफियत को परोस से जाते हैं लोग ।
कभी बेहोश फिर मदहोश होकर यूं ही ,
अक्सर अपनी होश खो जाते हैं लोग ।
अर्थहीन, संबंधहीन, संबंध, नाता, रिश्ता ,
यूं ही एहसान फरामोश हो जाते हैं लोग ।
देश की अनेकता में एकता होनी चाहिए ,
वजूद तमन्ना सरफरोश हो जाते हैं लोग ।
कभी ज़िगर ए जोश हो जाते हैं लोग ।
कभी जुवां खामोश हो जाते हैं लोग ।।
— मनोज शाह मानस