त्राहि त्राहि कर रहा देश
मची ऐसी हा हाकार
दम तोड़ रही सांसें
कहीं बिना इलाज के
क्योंकि नहीं मिल रहा बेड
कहीं बिना ऑक्सिजन
कहीं बिना दवा, इंजेक्शन
हर तरफ बस है लाचारी पसरी हुई
हर तरफ दर्द है पसरा हुआ
हर तरफ बस आँसूओं का सैलाब
नहीं जगह हस्पतालों में
नहीं जगह श्मशानों में
नहीं जगह कब्रिस्तानों में
यूँ बस दर दर भटक रहे परिजन अपनों की खातिर
पर चिंता किसे हैं इन जाती जानों की
न सिस्टम न सरकारों को
त्राहि त्राहि कर रहा देश
मची ऐसी हा हाकार
पर मग्न हैं सभी दल एक दूसरे पर आरोप प्रतिरोप पर
कोई दम तोड़ रहा घर में
कोई सड़क पर
कोई हस्पताल के बाहर
कोई हस्पताल में
यूँ हार रही ज़िन्दगी पग पग
और जीत रही मौत
पर कौन सुने फरियाद
चीखते, बिलखते आँसुओं की
उन अपनों की जिनके हाथों में दम तोड़ रहे अपने उनके
त्राहि त्राहि कर रहा देश
मची ऐसी हा हाकार
जो कल्पना मात्र से भी परे है
जहां ज़िन्दगी हुई मौत से बदतर
और मौत भी लाचार खड़ी कतारों में मुक्ति के लिए
यूँ बस हर तरफ है दर्द पसरा हुआ
हर तरफ खौफ़, हर तरफ बेबसी, हर तरफ आँसूओं का सैलाब
बेबस ज़िन्दगी और लाशों के ढेर में।।
— मीनाक्षी सुकुमारन