गोरे-गोरे मुखड़े पे दिल क्यों काले ?
शादीशुदी महिलाएँ
अविवाहित पुरुषों को
देखना पसंद नहीं करती ?
कुँवारे पुरुष भी
विवाहित महिलाओं के
पति से
मेलजोल नहीं बढ़ाते !
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एक महिला सहकर्मी के
गतवर्षीय बोल-
‘उन्हें तो ब्रह्मा भी
नहीं समझ सकते हैं !’
स्त्रीमन की बात ?
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एक महिला
सहकर्मी ने कहा-
‘न वो खाती हैं,
न खिलाती हैं !’
किन्तु पिछले
5 साल तक वो
दूसरों की ‘मक्खी’ भी
चूस-चूसकर खायी !
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मटुकनाथ की याद
हो आयी !
आज भी मैं
उनके अप्रिय छात्रों में
एक हूँ !
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महिलाएँ अपने पति को
इसतरह बदल लेती हैं?
यथा- पहले खाकपति थे,
अब लखपति !
रोडपति से करोड़पति !
उपराष्ट्र.. से राष्ट्र.. !
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संतान अच्छा करे
तो ‘बाप’ पर गया है,
लोग ऐसा कहेंगे ?
और गलती करे,
तो ‘माँ’ जिम्मेवार ?
क्यों ?
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गोरे-गोरे
मुखड़े !
पर
दिल क्यों है
‘काले’ ?
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