जो तन मन से हैं सधे, उत्तम हैं वो लोक।
आत्याचार देख तभी, हैं लेते जो रोक।
खामोशी है मारती, बड़बोलों के बोल।
बोलने से पहले ही, सदा शब्द को तोल।
खोमोशी ना धारिये, जुल्म करे जब नाद।
डट के मुकाबला करो, रोईये क्यो बाद।
चुप रहना ही ठीक है,चुप्पी गुण की खान।
वाद विवाद के झगड़े, ले लेते हैं जान।
खामोशी ने लूट ली, भरी सभा में लाज।
द्रोपदी मिन्नतें करे, लाचार बना समाज।
महाभारत की रचना, थी खामोशी मूल।
रचा गया संग्राम था, सब मर्यादा भूल।
खामोशी होती बुरी, उपजते मन विकार।
गुमसुम रहता जो फिरे करो सही उपचार।
— शिव सन्याल