कविता

प्रहरी बनेगा वो फिर एक बार

कितने मर गए कितने और मर रहे हैं
जैसा जो लिखा है वैसा ही भर रहे हैं
जाने का समय तिथि स्थान सब निश्चित है
फिर किस बात से यूँ ही डर रहे हैं
जो पैदा हुआ उसे छोड़ना ही पड़ेगा
यह काया यह नश्वर शरीर
बदल नहीं पाओगे तुम जो
विधाता ने लिखी है तकदीर
गली गली गांव गांव घूम रहे यमदूत
आदेश धर्मराज का पकड़े हाथ
कोई रोक न पाए उनको
जिसको ले जाना चाहें वो साथ
कुछ बड़े भी चले गए साथ छोड़
कुछ छोटों ने भी नहीं निभाया साथ
राम भजन भी काम नहीं आ रहा
दवाई की तो करें क्या ही बात
बड़े बड़े डॉक्टर साथ हो लिए उनके
किसी ने भी नहीं किया प्रतिकार
बिछुड़ गए जो वो नहीं मिलेंगे
कर लो जितनी चीखो पुकार
चारों तरफ दहशत सी है छाई
बन्द किये हैं उसने भी किवाड़
भरोसा तुम अपना टूटने मत देना
प्रहरी बनेगा वो फिर इक बार
मास्क लगा कर रखना है
दो ग़ज़ दुरी को अपनाना है
दूर दूर रहकर ही अब हमको
कोरोना को भगाना है
— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र