सुख – शांति की संकल्पना
काल की कठोरता हमें
बहुत कुछ सिखाता है
संकुचित भावजालों से
मुक्त होने का पाठ वह
बार – बार हमें पढ़ाता है
कोई नहीं बड़ा यहाँ तात
और न कोई छोटा जात
हरेक का होता है अपना
अलग महत्व इस जग में
ऊँच – नीच, जातीय दंभ
शोषण, दमन, अत्याचार
अमानवीय हरकतें सभी
होंगी चकनाचूर एक दिन
प्राकृतिक नियम है परिवर्तन
विकृति सारे जल जाएगी
मानव का मष्तिष्क भर जाएगी
भाईचारे की भव्य भावना से
शांति धम्म का अहसास होगा
मानव जग के कण – कण में
जीवन की नयी शुरुआत होगी।