कविता

अतिवृष्टि

लंबे इंतजार के बाद आई
पर जैसे क्रोध में आई,
पहले तो लगा तुम्हारा रुप वरदानी
पर थोड़े दिन में ही तूने
शुरू कर दी रंगत दिखानी।
लगातार तुम्हारा रूप
विकराल सा होने लगा,
तुम्हारी तांडव लीला से सभी का
सुख चैन खोने लगा।
खेत, खलिहान, बाग बगीचे
सब जलमग्न हो गये
जहाँ तक निगाह जाती,
बस तुम्हारे ही दर्शन होने लगे।
तुम्हारे क्रोध का कहर
हम पर टूट पड़ा,
पशुओं के चारे का
भी अकाल पड़ा।
करुँ विनती बता दो
तुम्हें कैसे मनाएं?
अपनी मनोदशा का
विवरण कैसे समझायें।
हे बरखा रानी अब दया करो
क्रोध का अपने परित्याग करो,
अपने तांडव से और न डराओ
अपना रौद्ररूप समेट कर
वापस अब लौट जाओ।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921