आम इंसा बना दर्द ए शायर
हमनें जाना गुमनाम सी जिंदगी में दर्द रंग भरता
एक आम इंसा तो बस अपना दर्द भुलाने और
सुकून पाने के लिए लिखता
एक दिन वही
गुमनाम इंसा दर्द ए शायर बन दुनिया से मिलता।।
वक्त और हालातों के झरोखों से जूंझ वो इंसा
खुद महक, शब्दों को महका गुल सा खिलता।।
भूला न पाता दर्द वो इंसा बस कभी तंहा रातों,
तो कभी यादों में डूब वेदना, अश्रु लिये लिखता।।
वैसे सच कहूं दर्द ए शायर के चेहरे पर दिखावे से
भरा मुस्कुराहटे नकाब हर वक्त मिलता।।
— वीना आडवानी तन्वी