/ वह गायब है /
वह गायब है
कूकना भूल गयी है वह
पेड़ों में
खेतों में
वन – उपवनों में
दिल से निकली उस आवाज़ में
प्रेम की एक बूटी थी
बल मिलता था
हाशिये की जनता को
दूर होती थी थकान,
समय बदल गया है
गर्मी के मारे सूख गया उसका गला
न उसके लिए पेड़ की छाया,
डाली का सहारा
वह कोयल गायब है
पन्नों में फुर्र-फुर्राते दर्शाती नहीं
आज उसकी मधुर आवाज़
सुनने को कहीं नहीं मिलती है
हर जगह बोलने लगे हैं मनुष्य
ऊँचे स्वर में
न उसमें कहीं प्यार है और
न लोक हित की संवेदना
बुद्धि का जाल है
अपनी शक्ति का गर्व
जाति – धर्म का फ़रमान है।