गीतिका
मैं टूटे दिल और सपनो को जोड़ रही हूं सुनो मुझे
मैं कांटो पे बिन चप्पल के दोड रही हूँ सुनो मुझे
मैने कलम बनायी है हथियार विषम्ता से लड़ना
मैं शब्दो के बाण ये तीखे छोड़ रही हूँ सुनो मुझे
मुझे नही मंजूर पिये पानी गन्दा हम नाली का
मैं दूषित नदियों का बहना मोड़ रही हूँ सुनो मुझे
संस्कार न हो जिसमें वो रक्त नही है पानी है
मैं दूषित धमनी का रक्त निचोड़ रही हूँ सुनो मुझे
मेरे आंचल तक पापी का हाथ भला कैसे पंहुचा
मैं दुस्साहसी की खुद बाहं मरोड़ रही हूँ सुनो मुझे
मेरे देश को बुरी नजर से जिसने भी देखा,घूरा
उन आँखो को उन्ही के घर में फोड़ रही हूँ सुनो मुझे
— शालिनी शर्मा